Saturday, July 20, 2019

606. कुदरत का प्रतिकार

कोई छेड़े जो कुदरत को, यही प्रतिकार है मिलता,
कहीं पे बाढ़ कहीं सूखा,   कहीं अँगार है मिलता।
मिटाकर सारे वन -उपवन, खड़ा कंक्रीट का जँगल-
धरा को कष्ट जब होता, यही उपहार है मिलता।।
©पंकज प्रियम


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