Sunday, July 7, 2019

598. कर नाटक

                    मुक्तक/ कर नाटक

     हुआ नाटक शुरू फिर से, सियासी खेल कर्नाटक,
     लगी फिर रेस कुर्सी की, टूटा जो दिल का फ़ाटक।
     मिलन बेमेल जब होता, कभी रिश्ता कहाँ टिकता-
     सियासी स्वार्थ का नाता, सदा होता बड़ा घातक।।
            ©पंकज प्रियम
           

7 जुलाई 2019

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