अम्बर बरसता है।
समन्दर में भरा जल है....मगर हरपल तरसता है,
बुझे है प्यास तब उसकी, अगर बादल बरसता है।
कड़ी जब धूप है पड़ती, गरम होता समंदर भी-
उसी का सोख के आँसू, उसी पे जल बरसता है।।
धरा का देख के आँचल, सभी का दिल तरसता है,
तरसती है धरा जब जब, तभी बादल बरसता है।
फ़टी छाती दिखाती है, तड़पती धूप में धरती-
द्रवित अम्बर जरा होता, उसी का जल बरसता है।
©पंकज प्रियम
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