रथयात्रा
आषाढ़ शुक्ल द्वितीया, घर से निकले नाथ।
रथ चढ़े मौसीबाड़ी, भाई- बहन के साथ।।
लकड़ी का है रथ बना, डोरी भी है साथ।
सुंदर रथ सब खींचते, चढ़े जगत के नाथ।।
निकली बड़ी रथयात्रा, खींच हजारों हाथ
सबके सर पर हाथ दे, जय जय जगन्नाथ।।
संग में बहिन शुभद्रा, ले भ्राता बलराम।
पहुँच के मंदिर गुंडिचा, प्रभु करते विश्राम।।
मुहूर्त बड़ी शुभ यात्रा, बनते बिगड़े काम।
कर ले जो रथ-यात्रा, पहुंचे प्रभु के धाम।।
©पंकज प्रियम
4.7.2019
No comments:
Post a Comment