समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
विधाता छन्द 1222*4 पढो कुरआन या गीता, प्रभु का सार बस दिखता, नहीं नफऱत सिखाती ये, सभी में प्यार बस दिखता। कहाँ मज़हब सिखाता है, किसी से बैर करने को- अमन जिसको नहीं भाता, उसे तकरार बस दिखता।।
©पंकज प्रियम गिरिडीह, झारखंड
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