समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मुक्तक अहमियत पेड़ की देखो,....समूचा गाँव है बैठा, कड़ी है धूप जो बाहर,...सभी को छाँव दे बैठा। अगर सब पेड़ काटोगे,....कहाँ से छाँव पाओगे- कदम की चाह में तुमने, कुल्हाड़ी में पाँव दे बैठा।।
©पंकज प्रियम
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