Thursday, July 4, 2019

594.कविता

मुक्तक-कविता

जले जब धूप में पर्वत, तभी सरिता निकलती है,
सजा ले प्रेम का दर्पण, तभी वनिता निकलती है।
किसी में प्यार गहराता,किसी को जख़्म हो जाता-
दिलों में दर्द जो उमड़े, तभी कविता निकलती है।

©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखण्ड

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