समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
छुपी आगोश में धरती, मुहब्बत देख बादल का, बड़ा ही खूबसूरत सा, नजारा देख इस पल का। समायी है धरा कैसी, जलद की बांह में जाकर- मनोरम है बड़ा देखो, मिलन वसुधा व बादल का।। ©पंकज प्रियम
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