Saturday, July 20, 2019

604.सावन तरसे

अरे आषाढ़ में तरसे,.....अभी सावन कहाँ बरसे
बरसती क्यूँ नहीं बरखा, सभी का मन यहाँ तरसे।
कहीं पे बाढ़ कहीं सूखा, करे क्यूँ खेल तू बरखा-
जरा बरसो अभी ऐसे,.. सभी तनमन यहाँ हरसे।।
©पंकज प्रियम


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