समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
आज़म छुपे आस्तीन में जैसा, विषैला सर्प है आज़म जहाँ रहता उसे डंसता, दिखाता दर्प है आज़म। चले जाए जहाँ जाना, इसे रोका यहाँ किसने- बड़ा बनता मुसलमा ये, पढ़ा ना हर्फ़ है आजम। ©पंकज प्रियम
Post a Comment
No comments:
Post a Comment