Friday, July 5, 2019

597.मुसाफ़िर

               

                   मुसाफ़िर..अल्फ़ाज़ों का..
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो,
भरा है प्रेम का दरिया,  उसे खामोश बहने दो।
मचल जो दिल गया मेरा, बड़ा तूफ़ान लाएगा-
मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो।।

सिपाही हूँ कलम का मैं, मुझे यह जंग लड़ने दो,
ग़ज़ल कविता कहानी में, मुझे हर ढंग गढ़ने दो।
कलम को छेड़कर के भी, कभी तोड़ी न मर्यादा-
प्रियम हूँ मैं मुहब्बत का, मुझे यह रंग चढ़ने दो।।

        ©पंकज प्रियम


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