1.
जीवन कुछ ऐसा जियो,जग तुझसे हर्षाय
जुगनू बन रौशन करो,मन का तिमिर हटाय।
2.
अब जुगनू दिखते कहाँ,किसने दिया भगाय
बिजली की झक रौशनी,जुगनू तो छुप जाय।
3.
अब वो बचपन है कहाँ,अपना बल्ब जलाय
बच्चों के लिए जुगनू,आप बोतल समाय।
4.
जुगनू सी अब जिंदगी,आप सिमटती जाय
अस्तित्व मिट जाएगा,कुछ तो करो उपाय।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह(झारखंड)
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Thursday, July 19, 2018
388.जुगनू
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