Friday, July 6, 2018

375.तवायफ़ की पुकार



तवायफ़ की पुकार

मासूमों का देख बलात्कार
तवायफें भी सिसक पड़ी है
आ जाओ बहशी दरिंदो!
तुम्हारे लिए मुफ्त में खड़ी हैं।

चीख चीख कर रही पुकार
बच्चों पे क्यों नजर गड़ी है?
आ ही जाओ तुम मेरे द्वार
अपने हवस की जो पड़ी है।

क्या सुख मिलता है तुम्हें?
मासूम कलियों को नोचकर
क्या हवस मिटती है तेरी
नन्हीं जान को ऐसे मरोड़कर।

हमने तो खोल रखी है दूकान
तेरे जैसे आदमखोरों के लिए
अपना भी है एक बड़ा मकान
तेरे जैसे हवस चोरों के लिए।

नहीं है पैसे तो मुफ्त में आओ
जितना चाहो, हवस मिटाओ
पर बक्श दो मासूम बच्चों को
चाहे तो पूरे बदन दाँत गड़ाओ।

हम पेट की आग बुझाने को
अपना बदन रोज जलाते हैं
तेरे जैसे दरिंदों से बचाने को
हम आंसुओं में लहू छुपाते है।

तुम्हें जिस्म चाहिए,ले जाओ
 मासूमों की न बलि चढ़ाओ
और नहीं तो मेरे पास आओ
ज़रा मर्दानगी मुझपे दिखाओ।

©पंकज प्रियम

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