Tuesday, July 3, 2018

372.मेघ मल्हार


घनर घनर घनघोर घटा, गाये मेघ मल्हार
चमक चमक चमके बिजुरी, तेज कटार।

कारे कारे बदरा छाए,झूम के पपीहा गाये
छमक छमक छमछम नाचे बरखा बहार।

चांदी से चमकती आँगन नाचती बर्षा बूंदे
अंगना उतरी दरिया,चले कागज पतवार।

लबालब भरी ताल-तलैया,करे ताता थैया
कलकल कलकल, करे नदिया की धार।

बह बह बहके बदरा,रह रह गिरे बिजुरिया
मह मह महके मदमस्त मनमोहनी बयार।

नाचे मोर पपीहा गाये,खेत किसान हर्षाये
झूम झूम झूला झूले सजनी करके सिंगार।

सावन संग सोलह सिंगार से सजनी सजे
टक टक टकटकी करे साजन का इंतजार।

झम झम झमाझम जो बरसे,मनवा तरसे
दह दह दहके दिल,चले जो बिरहा कटार।

©पंकज प्रियम
3.7.2018

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