त्रेतायुग का श्रवण कुमार
पितृभक्ति का था अवतार
मां बाप आंखों से लाचार
तीर्थ की इच्छा थी अपार।
मातु पिता की इच्छा जान
कुमार ने भी ली यह ठान
कांधे कांवर बिठाके चला
श्रवण कुमार बना महान।
बीच राह लगी जो प्यास
रोकी यात्रा नदी के पास
दसरथ का जो तीर लगा
टूट गयी श्रवण की सांस।
मात पिता ने छोड़े प्राण
श्रवण की मृत्यु को जान
दशरथ को भी श्राप मिला
पुत्र वियोग में दे दी जान।
अब ऐसा कोई सपूत कहां
कलयुग जन्मे कपूत यहां
माता पिता को रोता छोड़
अलग बसाता अपनी जहाँ।
मां बाप करते रहते पुकार
पास तो आ जाओ एकबार
बच्चे जाते सब रिश्ते तोड़
नहीं रहा जो श्रवण कुमार।
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम"
No comments:
Post a Comment