पेड़ों से बनता जंगल
जंगल से होता मंगल
आश्रित है जनजीवन
सृष्टि का होता सृजन।
पेड़ों से मिलती हवा
इनसे बनती है दवा
यही देते हमें भोजन
यही रोके मृदा क्षरण।
सब इसको है जानते
फिर भी नहीं मानते
खुद कर रहे अमंगल
रोज काट रहे जंगल।
विकास या विनाश है
मौत का अट्टहास है
पेड़ों का कर सफाया
खुद करते सर्वनाश हैं।
कैसे पाओगे छाया?
पेड़ों का कर सफाया
सड़क का चौड़ीकरण
कहीं होता शहरीकरण।
©पंकज प्रियम
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