Monday, July 23, 2018

393.काश!पायल बोल पाती

मेरे पैरों में रुनझुन गाती
रोज नया संगीत सुनाती
काश!बन्धन खोल जाती
काश! पायल बोल पाती

जब जब दिल मेरा रोता
थोड़ा दर्द तुझे भी होता।
बाबुल को तुम कह आती
काश!पायल बोल पाती।

बचपन की तुम हो साथी
मैं दीया,तुम मेरी हो बाती
मेरे गम को साथ जलाती
काश! पायल बोल पाती।

उस दिन तुम खामोश रही
जब उसने मुझको रौंदा था
यहां वहां,जाने कहां कहां
दरिंदों ने मुझको नोचा था।

मेरे मुंह में बंधा था कपड़ा
जिस्मों से हटा था कपड़ा
तुम तो जोर से चिल्लाती
काश!पायल बोल पाती।

जब जकड़ा जोर बन्धन
टूटी चूड़ी,टूट गए कंगन
तुम कान्हा को कह आती
काश! पायल बोल पाती

समय रहते जो होती चेत
उनका गला मैं देती रेत
राज उनके तू खोल जाती
काश! पायल बोल पाती।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह,झारखंड

No comments: