समंदर का अब कोई साहिल नहीं रहा
महफ़िल में अब कोई शामिल नहीं रहा।
चल दिये मुंह फेर करके वो इस कदर
उनकी मुहब्बत के मैं क़ाबिल नहीं रहा।
उनकी मुहब्बत के मैं क़ाबिल नहीं रहा।
हम दिनरात इश्क़ उनसे जो करते रहे
खो दिया चैन,कुछ हासिल नहीं रहा।
खो दिया चैन,कुछ हासिल नहीं रहा।
अपने दिल में छुपा के रखा था उसको
निकले वो ऐसे की दिल,दिल नहीं रहा।
निकले वो ऐसे की दिल,दिल नहीं रहा।
दिल बहलाने को बहुत मिलते हैं मगर
किसी से "प्रियम" दिल,मिल नहीं रहा।
किसी से "प्रियम" दिल,मिल नहीं रहा।
©पंकज प्रियम
1 comment:
प्रेम का समर्पण और उसके बदले खालीपन, यही ग़ज़ल की असली ताकत है। मज़बूरी और तन्हाई का जो एहसास है, वो हर शेर में झलकता है। सबसे गहरी बात ये है कि तुमने सिर्फ दर्द नहीं दिखाया, बल्कि उस खोए हुए प्यार की असली कदर भी महसूस कराई।
Post a Comment