विश्वविजय
खड़ा हुआ है लौहपुरुष,
एकता भाव जगाने को।
खण्डित होते भारत को
फिर अखण्ड बनाने को।।
वर्षों से जो रहा उपेक्षित,
अब सम्मान दिलाने को।
देशप्रेम जीवन समर्पित,
बल्लभ कदम मिलाने को।।
आसमां को छूता परचम,
झंडा तिरंगा लहराने को।
सबसे ऊंचा रहता हरदम,
विश्व पताका फहराने को।।
दौड़ पड़े हैं सब मिलकर,
एकता का पाठ पढ़ाने को।
कदम-कदम आगे चलकर,
खुद को भी साथ बढ़ाने को।।
देख रही अब सारी दुनियां,
भारत बढ़ा हाथ मिलाने को।
फिर उड़ी है सोने की चिड़ियाँ,
खुद विश्वविजयी कहलाने को।।
©पंकज प्रियम
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