एक तेरा और एक मेरा न समझो
सिर्फ था वो सात कदमों का फेरा।
हर कदम खुद पढ़ती इक कसम
हर सांस पर लिखा साथ का डेरा।
पिता-वियोग, पति-मिलन संयोग
रिश्तों के अग्निपथ का वो था घेरा
साथ सात शपथ लेकर साथ कदम
कदमों के हमकदम बनने का फेरा।
घर बाबुल का छोड़,बेटी का समर्पण
जीवन हवन आहुति का प्रण था तेरा
लेकर हाथों में हाथ,कसमों के साथ
परिक्रमा सृजन संसार का था फेरा।
एक दूजे के लिए,खुद का सात वादा
साक्षी बना प्रेम अटूट विश्वास का घेरा
संग जीने मरने सात जन्मों का इरादा
एक दूजे के नवजीवन का था फेरा।
एक दूजे के लिए नवसृजन का वादा
तेरा-मेरा साथ सात, कसमों का फेरा
एक दूजे के लिए नवजीवन का वादा
साथ थे जो चले सात कदमों का फेरा।
©पंकज प्रियम
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