Tuesday, October 9, 2018

माँ

माँ क्या होती है?
ख्यालो की तन्द्रा भंग हुई
देखा सामने मलीन वस्त्रो में
डरा सहमा, निरीह नजरों से
एक बालक चुपचाप खड़ा था।
आश्चर्य! चकित!!अवाक!!!
मैं मानो मूढ़ बन गया
क्या ?मालूम नहीं अभागे को
माँ क्या होती है?
अरे!
बलिदान की देवी
वात्सल्य की सुरत होती है
अमृत की सहस्रधारा
करुणा स्नेह की मूरत होती है
तपिश में चाँदनी
दर्द की दवा बन जाती है
उष्णता में शीतल जल
आन पड़े जो कभी
बच्चों की खातिर
खुद कुर्बान हो जाती है
कोपल का अभेद्य कवच
तकवार की ढाल बन जाती है
माँ का जिसको प्यार मिला
बस समझो कि संसार मिला
गुरु ईश्वर और साथी
दीप की रोशन बाती
कर्तव्य साधना की
भोली सुरत होती है
धरती पे भगवान की
सच्ची मूरत होती है।
माँ
हाँ माँ
यही होती है।
ओ माँ
माँ।
©पंकज प्रियम

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