Sunday, October 28, 2018

467.मुक्तक। नाम

कोई गुमनाम मरता है,कोई बदनाम करता है
सफ़र-ऐ-जिंदगी ऐसी,कोई आराम करता है
नहीं शिकवा किसी से हो,नहीं गिला करे कोई
कदम मिलके बढ़ाये जो,वही तो नाम करता है।

©पंकज प्रियम

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