Friday, October 12, 2018

458.ख़्वाब मुक्तक

ख़्वाब भर दूँगा

निगाहों के समंदर में,हसीं इक ख़्वाब भर दूँगा
अधर को चूमकर तेरे,    कली गुलाब कर दूँगा
सुवासित हो मेरा जीवन,बदन महके तेरा चंदन
मुझे ना आजमाना तुम,  तुझे बेताब कर दूँगा।
©पंकज प्रियम

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