समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
ख़्वाब भर दूँगा
निगाहों के समंदर में,हसीं इक ख़्वाब भर दूँगा अधर को चूमकर तेरे, कली गुलाब कर दूँगा सुवासित हो मेरा जीवन,बदन महके तेरा चंदन मुझे ना आजमाना तुम, तुझे बेताब कर दूँगा। ©पंकज प्रियम
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