समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
सपने। मुक्तक
पलक जो बन्द कर देखा,वही सपना होता है पलक जो खोल कर देखा,वही अपना होता है कहाँ पूरे हुए सपने,कहाँ कब हो सके अपने उड़ा दो नींद आंखों की,तभी अपना होता है।
©पंकज प्रियम
Post a Comment
No comments:
Post a Comment