Friday, October 5, 2018

447.मुक्तक। चरणामृत

चरणामृत
जरा सा चरणामृत पिया,क्यूँ बवाल करते हो
ऐसा उसने क्या किया,जो सवाल करते हो
यहां चाटे है जो तलवा,वही खाता है हलवा
उसने क्या पैर है धोया,तुम कमाल करते हो।

©पंकज प्रियम

No comments: