समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
धन जो पास नहीं होता,बड़ा मजबूर करता है धन जो पास बहुत होता,बड़ा मग़रूर करता है नहीं कोई शख्स है ऐसा, जो चाहे नहीं पैसा धन को पाकर हर अक्स,बड़ा गुरुर करता है। ©पंकज प्रियम
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