समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मुक्तक
खिले जो पुष्प उपवन में,भ्रमर करते अनुगूँजन भरे जो वृक्ष जंगल में,भ्रमण करते वन जीवन प्रकृति आस वसुधा की,प्रकृति सांस जीवन की रहे खुशहाल ये जीवन,अगर करते संरक्षण।
©पंकज प्रियम
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