तेजस पर बवाल
★पंकज प्रियम
तेजस ट्रेन की इन तस्वीरों पर बहुत से लोगों का संस्कार जग गया है वैसे भी लोग इसका विरोध करने लगे हैं जो बिगबॉस में लड़के लड़कियों को एक साथ बेड शेयर करते हुए देख रहे हैं, दिनरात इंटरनेट पर पोर्न फिल्मों का आनन्द लेते रहते हैं। बच्चों के साथ बैठकर हिंदी, अंग्रेजी और भोजपुरिया फूहड़ अश्लील गाने देखते रहते हैं। तेजस की ट्रेन हॉस्टेस में अश्लीलता उन्हें भी दिख रही है जो खुद अपने बच्चों को फैशनेबल फ़टे जीन्स पहनने पर रोक नहीं सकते। देर रात पब और क्लबों में जाने से रोक नहीं पाते। ग्रामीण परिवेश में भी शहरी कल्चर ढालने लगे हैं। नवरात्र में माता दुर्गा की आराधना और सप्तशती का पवित्र पाठ करने और कराने की बजाय डांडिया कल्चर हावी हो रहा है जहां औरते और लड़कियां पूरी नंगी पीठ और छोटे-छोटे कपड़ों में आती है। सेविंग क्रीम और पुरुषों के गंजी जांघिया के विज्ञापन में अधंनगी लड़कियों की तस्वीर देखकर ही आप उस प्रोडक्ट को खरीद लेते हैं।
लोगों की यह भी दलील है कि इससे सरकारी ट्रेनें बर्बाद हो जाएंगी तो यार! इससे पहले कौन सी बुलेट ट्रेन चल रही थी। याद है पिछले महीने प्रीमियम ट्रेन हमसफ़र एक्सप्रेस से दिल्ली गया था, स्टेशन पर खुलते ही बोगी को छोड़कर इंजन आगे निकल गयी, एक बड़ा हादसा होते रह गया। दिल्ली करीब 6 घण्टे लेट पहुंची न तो पेन्ट्री कार और न ही कोई बेहतर सुविधा लेकिन टिकट प्लेन के बराबर। जितने पैसे में हमसफ़र एक्सप्रेस से करीब 20 घण्टे में दिल्ली गया उतने ही पैसे में एयर इंडिया से महज 2 घंटे में वापस राँची लौट आया। अब भला ऐसी ट्रेन से कोई क्यों जाय?
हां तो मैं बात कर रहा था तेजस की सुंदर होस्टेस की तो ऐसी होस्टेस तो प्लेन में शुरू से रहती है और अब हर कोई उसपे सफर करता है। वहां भी सरकारी से अधिक डिमांड प्राइवेट प्लेन की होती है। ये तो बहुत सलीके से है तनिक अपने आसपास ही नज़र दौड़ाइये तो फैशन के नाम पर फ़टे जींस और फ़टे कपड़ो में अधनंगे शरीर दिख जाएंगे। होटलों में खुलेआम कॉलेज की लड़कियां शराब सिगरेट पीती नजर आती है।किसी भी पार्क में चले जाएं क्या स्थिति दिखती है। सवाल सिर्फ तेजस का नहीं है जब भी सरकारी तंत्र सुस्त होगा निजी सेक्टर आगे बढ़ेंगे ही। मोबाइल ही देख लीजिए BSNL की खराब सर्विसेज के कारण ही निजी कम्पनियों की एंट्री हुई। याद कीजिये bsnl की जब sim लॉन्च हुई तो लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी भारी मशक्कत से एडवांस रुपया जमा करने के 3 महीने बाद लोगों को sim मिला था। लेकिन भाई साहब नहीं लगने लगे तो airtel, idea, voda और रिलायन्स ने पाँव पसारने शुरू कर दिए इसमें भी BSNL के कुछ भ्रस्ट अधिकारियों ने उनके लिए राह आसान की होगी। यही हाल सरकारी बसों का है आज कितने लोग ट्रांसपोर्ट की बसों में सफर करते हैं? सभी को लक्ज़री वॉल्वो बस ही चाहिए। सरकारी बस या ट्रेन के सीटों पर ब्लेड चलाने से लोग नहीं हिचकते, आज भी टॉयलेट के मग को जँजीर से बांधकर रखना पड़ता है। जहां जिसको मौका मिला वही हाथ साफ कर लेता है, बात बात पर ट्रेन पुलिंग, तोड़फोड़ और चोरी यहां तक कि ट्रेन की चादर तक चुराकर ले जाते हैं। सिर्फ सरकारी तंत्र ही दोषी नहीं है इसके लिए आम जनता भी दोषी है। कितने लोग सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ाते हैं? कितने लोग सदर अस्पताल में जाते हैं?
सिर्फ सरकार या सरकारी तंत्र को कसूरवार ठहरा देने से आप अपने कर्तव्यों से पीछा नहीं छुड़ा सकते। संविधान ने अगर मौलिक अधिकार दिए हैं तो मौलिक कर्तव्यों का भी जिक्र है। आप कहेंगे ये सब तो सरकार का काम है, बेशक जनता की मूलभूत सुविधाओं को बहाल करने के लिए सरकार है लेकिन जनता भी अपने कर्तव्यों को सही तरीके से निभाये। क्या है न की हमें जो चीज मुफ्त में मिलती है न उसकी क़द्र ही नहीं करते। सरकारी चीजों को महत्व ही नहीं देते वहीं प्राइवेट चीजों पर अधिक भरोसा करते हैं। यही कारण है कि आज निजी कम्पनियों के पौ बारह हैं। कुछ भ्रष्ट नेता, मंत्री और अधिकारियों के कारण पूरा सरकारी तंत्र सवालों के घेरे में आ जाता है। जब तक हम नहीं सुधरेंगे देश बिल्कुल ही नहीं सुधरेगा। आज रेलवे का निजीकरण हुआ है तो इसके लिए हम सब जिम्मेवार हैं हमें प्राइवेट चीजें ज्यादा पसंद आती है फिर चाहे स्कूल हो, अस्पताल हो, बैंक हो, बस हो या फिर जहाज हो। सरकारी चीजों को तो हमने चकलाघर बना रखा है जिसे जैसे आता है खेल कर चला जाता है। जिस दिन प्राइवेट अस्पताल, स्कूल ,बस और मोबाईल आया उसी दिन विरोध शुरू हो जाता तो फिर किसी सेवा का निजीकरण नहीं होता। लेकिन बाजार में अगर प्रतिस्पर्धा न हो तो मोनोपोली हो जाता है। आज प्रतिस्पर्धा के कारण ही bsnl और दूसरी कम्पनियो के कॉल रेट इतने कम हुए हैं जिसका फायदा आम उपभोक्ताओं की मिल रहा है। सरकारी बैंकों को भी सुविधाओं में बढ़ोतरी करनी पड़ी है। सरकारी अस्पताल और स्कूलों में भी प्राइवेट जैसी सुविधाएं देनी पड़ रही है। ट्रेनों में लम्बी वेटिंग लिस्ट और जनरल बोगियों में भेड़ बकरी की तरह खचाखच भीड़ पर सरकार को ही दोष देने लगते हैं लेकिन जब सरकार हम दो हमारे दो के परिवार नियोजन कानून लाती है तब लोग विरोध करते हैं और सुवरों की तरह दर्जन भर बच्चे पैदा कर दिनरात भीड़ बढ़ाते रहते हैं। अगर बेहतर सुविधा से लैस अत्याधुनिक ट्रेन सेवा आ भी गयी तो फायदा यात्रिओ को ही होना है। इससे सरकारी ट्रेनों में भी बेहतर सुविधा और समय पर परिचालन का दबाव बढ़ेगा इसके लिए सरकार और आम जनता को एक साथ कदम बढ़ाना होगा। सरकार पर ट्रेनों में सुधार का दबाव बनाना होगा तो वहीं अपने व्यवहार में भी सुधार करना होगा। विदआउट टिकट की आदत छोड़नी होगी। ट्रेनों से चादर, आईना, पंखे और टॉयलेट का मग चोरी करने की आदत छोड़नी होगी। सीटों को फाड़ने और टॉयलेट में अश्लील चालीसा लिखने वालों को सजा देनी होगी। विकास के लिए हर किसी को लगना होता है। हम सुधरेंगे तभी देश सुधरेगा।
©पंकज भूषण पाठक "प्रियम"
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Monday, October 7, 2019
681.तेजस पर बवाल
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