समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
छोटी ऊँगली उठा गोबर्धन, अहम इन्द्र का चूर किया। कृष्ण कन्हैया राधेमोहन, संकट सबका दूर किया।
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