Monday, December 24, 2018

490.जल गयी नन्ही कली

जल गयी नन्ही कली
जल गयी नन्ही कली
रो रहा है दिल मेरा,आँखे फिर ये नम हुई
वासना की आग से,बेटी फिर से कम हुई।
देखो जिंदा जल गई, फिर से नन्ही कली,
आसिफा.निर्भया,नेहा और अब संजली।।
जल गयी नेहा यहाँ, जल गयी ये संजली।

आसमां ये जल रहा, धरती देखो गल रही,
वासना की आग कैसी हर तरफ जल रही।
रह गया महफ़ूज नही कोई दर कोई गली,
देखो कैसे जल गयी,फूलों सी नंन्ही कली।।
आसिफा....।
कैसी है यह आशिक़ी, कैसी है यह गन्दगी
एक तरफ के खेल में, हारती बस जिन्दगी।
बहशी दरिन्दे फिर रहे, हर डगर हर गली,
देखो कैसे जल गयी, फूलों सी नन्ही कली।
आसिफा..।
क्या खुदा बहरा हुआ,या ये ईश्वर सो गया,
सामने सरकार के कैसे यह मंज़र हो गया।
दिनदहाड़े बीच सड़क,मौत की कैसे चली
देखो कैसे जल गयी,फूलों सी नन्ही कली।।
आसिफा...।
बेटी अब कैसे पढ़े, किस तरह आगे बढ़े,
कोख में तो मर रही,बाहर भी जिंदा चढ़े।
कोई समझे गुड़ तो कोई कहे मिश्री डली,
हाथों ही मसल गयी, कैसे खिलती कली।।
आसिफा....।
समझा दो लड़कों को, अब कदम रोक लें,
जो ना समझे वो अगर, खुद से ही ठोक दें।
वासना की बेदी में, ना चढ़ाएं अब वो बलि,
इधर उनके कदम बढ़े,उधर से गोली चली।।
आसिफा....।
©पंकज प्रियम
#संजली@आगरा
#नेहा@देहरादून

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