बरखा और बिजली
अरि ओ बरखा! तू आती है
तो क्यूँ बिजली चली जाती है ?
तुम दोनों क्यूँ इतना सताती है
तू आती है वो चली जाती है
तू बरखा और वो है बिजली
कभी सौतन तो कभी सहेली।
उधर तेरा फॉल डाउन हुआ
इधर इसका ब्रेकडाउन हुआ।
तेरा ये टिप-टिप के बरसाना
उसका ट्रिप-ट्रिप से तरसाना।
तेरा कैसा ये आपसी नाता है
हरबार ही मुझको सताता है।
उफ़्फ़!दिसम्बर की ये बारिश
और बिजली की ये साज़िश।
क्यूँ इतना मुझको सताती है
क्या ऐसे ही प्यार जताती है!
©पंकज प्रियम
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