Friday, December 21, 2018

486.हिन्दुस्तान में डर!

क्यूँ डर लगता है साहब!

क्यूँ डरते हो शाह तुम,
क्यूँ भरते हो आह तुम।
ये देश नहीं गद्दारों का,
क्यूँ करते परवाह तुम।।

कभी डरता वो खान है
कहता खतरे में जान है
जिसने तुम्हें पहचान दी
वही मुल्क हिंदुस्तान है।

बंगलों में तुम रहते हो
रुपयों में तुम बहते हो
जब घेरा पहरेदारों का
क्यूँ फिर तुम डरते हो।

कहाँ खौफ़ इंसानों में
कहाँ खौफ़ किसानों में
सीमा पर तैनात सदा
कहाँ खौफ़ जवानों में ।

जब भी विपदा आयी है
खुद ही राह दिखायी है
खौफ़ नहीं तलवारों का
खुद का लहू बहायी है।

कण-कण माटी चंदन है
जन-जन करती वंदन है
सानी नहीं संस्कारों का
भारत ही अभिनन्दन है।

खौफ़ नहीं हथियारों से
न दुश्मन की तलवारों से
मुल्क है वीर जवानों का
ख़तरा है बस गद्दारों से।

देश में जितने संहार हुए
पीछे से ही सारे वार हुए
साथ मिला जयचंदो का
दुश्मन जो सीमापार हुए।

हमलों से हम बर्बाद रहे
फिर भी हम आबाद रहे
दुश्मन को धूल चटाकर
हम करते जिन्दाबाद रहे।

बंटवारें का तो दंश मिला
कहाँ हमारा वो अंश मिला
सियासी द्यूत खेले शकुनि
कुर्सी पर बैठा कंस मिला।

जो भी आया शरण मिला
सबको अपना धरम मिला
ना ही द्वेष ना ही भेद कोई
सबको अपना करम मिला।

किस देश में इतनी आज़ादी
किस देश में इतनी आबादी
भारत सबको आश्रय देकर
खुद ही सहता सब बर्बादी।

जिस मुल्क ने पहचान दिया
मान दिया अभिमान दिया
आज उसी को गाली देकर
क्या खूब ही सम्मान दिया।

कुछ शर्म करो डरने वालों
स्वार्थ में हरपल मरने वालों
किस हद तक गिर जाओगे
बदनाम देश को करने वालों।

देखो जाकर पाकिस्तान में
चले जाओ किसी जहान में
समझ में तब आ जाएगा
कितना सुकून हिंदुस्तान में।

©पंकज प्रियम

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