समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
यादें कोई जब याद आता है तो यादें याद आती है, यादों के दरमियां जाकर वो बातें याद आती है। मेरे जो पास होकर भी, नहीं वो पास मेरे होते, जो आंखों में कभी गुजरी,वो रातें याद आती है।। ©पंकज प्रियम
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