Sunday, December 9, 2018

470.इंसा है या नादान

शुक्रिया तेरा बहुत,
ओ भले इंसान
सबकी चाहत होती
पिंजर में हो कैद उड़ान।
कैसे तुमने समझा मुझको
कैसे तुमने दिया सम्मान
तुम हो इंसां या हो नादान

सबने चाहा मुझे कैद करना
मेरी बेवशी पर मौज करना
कुतर-कुतर के मेरे पर
दे दिया लोहे का पिंजर
खिलखिलाते सब सुनकर
पिंजरे से टकराते मेरे स्वर
शुक्रिया तेरा करूँ अभिनन्दन
सुना तुमने मेरा करुण क्रन्दन।
दिया तुमने मुझको आसमान
तू इंसां है या है फिर नादान।

लालिमा फिर निकली नभपर
हौसला मिला फिर मुझे अम्बर
पंख फैला फिर उड़ी अपने पर
मिली मुझको फिर अपनी उड़ान
शुक्रिया तेरा करूँ ओ भले इंसान
तू इंसा है या फिर है नादान।
©पंकज प्रियम

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