बेटी
मुझको तो स्कूल जाना है,
माँ का भी हाथ बंटाना है।
छोटी कोमल हाथों से-
चूल्हा-चौका सजाना है।।
क्या करूँ मेरी मजबूरी है,
घर का भी काम जरूरी है।
कुछ बनकर तो दिखाना है
माँ का भी हाथ बंटाना है।।
भैया तो चल जाता स्कूल,
बेटी होना क्या मेरी भूल?
घर की लक्ष्मी बन जाना है,
माँ का भी हाथ बंटाना है।।
खो रहा मासूम सा बचपन,
जिम्मेदारी जैसे हो पचपन।
मुझको तो हर दर्द पचाना है,
माँ का जो हाथ बंटाना है।।
©पंकज प्रियम
1 comment:
बेटी की भावनाओं को बखूबी दर्शाया हैं आपने ,बहुत ही प्यारी रचना ,सादर
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