ग़ज़ल
क़ाफ़िया-आर
रदीफ़- मिलता है।
बहर-1222 1222 1222 1222
फ़क़त ही याचना करके, कहाँ अधिकार मिलता है,
उठा गाण्डीव जब रण में, तभी आगार मिलता है।
नहीं मिलता यहाँ जीवन, बिना संघर्ष के कुछ भी,
अगर मन हार बैठे तो, कहाँ दिन चार मिलता है।
अगर खुद पे यकीं हो तो, समंदर पार कर लोगे,
मगर साहिल पड़े रहकर, कहाँ उस पार मिलता है।
नसीबों में कहाँ सबको, सदा ही जीत मिलती है,
बिना कूदे समर में क्या, कभी यलगार मिलता है।
मुहब्बत में सदा सबको, कटाना शीश पड़ता है,
फ़क़त दिल को लगाने से, कहाँ ये प्यार मिलता है।
सदा ही आग में तपकर, बने कुंदन यहाँ सोना,
जले जो आग में पत्थर, तभी अंगार मिलता है।
"प्रियम" ये ज़िन्दगी हरदम, यहाँ लेती परीक्षा है,
बिना बलिदान के जीवन, कहाँ संसार मिलता है।
©पंकज प्रियम
4 comments:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-11-2019) को "यूं ही झुकते नहीं आसमान" (चर्चा अंक- 3506) " पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं….
-अनीता लागुरी 'अनु'
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जी धन्यवाद आभार
हौसले पर कायम संसार , सुंदर सृजन।
लाजबाब सृजन पंकज जी ,सादर नमन
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