मुक्तक
बदन को छू ले तो फिर, पवन बेताब हो जाता,
अधर को चूम कर तेरे, चमन गुलाब हो जाता।
नहीं कोई करिश्मा है, तुम्हारा हुस्न है ऐसा-
नज़र में डूबकर तेरे, हसीं इक ख़्वाब हो जाता।।
बदन में छू अगर ले तो, पवन अलमस्त हो जाता,
अधर को चूमकर कर तेरे, अधर मदमस्त हो जाता।
हसीं इक ख़्वाब के जैसी, महकती बाग के जैसी-
नयन में डूबकर तेरे,..... प्रियम भी मस्त हो जाता।।
©पंकज प्रियम
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