समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
हुस्न/मुक्तक विधाता छंद 1222*4 नज़र मेरी न लग जाये, ...जरा काजल लगा लो तुम, नज़र सबकी न चढ़ जाये, गिरा आँचल उठा लो तुम। ग़जब ये हुस्न है तेरा, .......तुझे जब देखता हूँ मैं- कदम मेरे बहक जाते....जरा ये दिल सँभालो तुम।। ©पंकज प्रियम 2 सितम्बर 2019
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