Saturday, September 28, 2019

669. समन्दर

उफ़नती मचलती सी जवानी के जोश में,
अल्हड़ सी दरिया खुद समाये आगोश में।
फिर समंदर का भला इसमें दोष कैसा-
टकरा के मुहब्बत वो रहे कैसे होश में।।
©पंकजप्रियम

No comments: