समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
उफ़नती मचलती सी जवानी के जोश में, अल्हड़ सी दरिया खुद समाये आगोश में। फिर समंदर का भला इसमें दोष कैसा- टकरा के मुहब्बत वो रहे कैसे होश में।। ©पंकजप्रियम
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