Friday, September 6, 2019

648. निगाहें

निगाहें

निगाहें ख़ंजर का भी काम करती है,
जिधर उठती है कत्लेआम करती है।
इन आँखों की गुस्ताखियां तो देखो-
दिल की बातें भी सरेआम करती है।।

निगाहें मैख़ाने का भी काम करती है,
मुहब्बत के पैमाने में जाम भरती है।
डूबकर कभी इन आँखों में तो देखो-
खुद आंखों की नींद हराम करती है।।

निगाहें किताबों का भी काम करती है,
कोरे पन्नों से भी इश्क़ पैगाम करती है।
पढ़कर कभी देखो नैनों की तुम भाषा-
दिल के जज्बातों को सलाम करती है।।
©पंकज प्रियम

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