समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
चयन चयन तुम आज ही कर लो, किसे कुर्सी बिठाना है, किसे नीचे गिराना है,.........किसे ऊंचा उठाना है। मिला अधिकार है तुमको, नया निर्माण करने को- तुम्हारे हाथ चयन होगा,...किसे रखना हटाना है।। ©पंकज प्रियम
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