समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
छलिया/मुक्तक ************ छले जो बात से सबको, वही छलिया कहा जाता लगाकर झूठ का तड़का, जली रोटी खिला जाता। बहाने खूब करता जो, .....हमेशा झूठ कहता वो- दिखाकर ख़्वाब फूलों का, वही काँटे चुभा जाता।। ©पंकज प्रियम
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