समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
मुक्तक
मत से मत का ऐसा मतभेद हो गया अलग कुरान बाइबिल वेद हो गया। बिखर गए सब यूँ रंग-वर्ण-धर्मों में, जन-मन के भेद में अभेद खो गया।।
©पंकज प्रियम
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