समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
बेशर्म महबूबा/मुक्तक
बड़ी बेशर्म महबूबा,.....जुबाँ है पाक की इसकी, लगी मिर्ची इसे देखो, मिली जो पाक को धमकी। अगर इतनी मुहब्बत है, पड़ोसी मुल्क से तुझको- चले जाओ उसी के घर, तुझे चाहत यहाँ किसकी। ©पंकज प्रियम 22.04.2019
Post a Comment
No comments:
Post a Comment