Sunday, May 5, 2019

561. वन्देमातरम पे बवाल

वन्देमातरम! भारतमाता की जय!!
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वन्देमातरम और भारत माता की जय कहने में आख़िर बुराई क्या है? हम जिस देश में रहते हैं,जिसकी रोटी खाते हैं उसके जयजयकार से भला क्यों एतराज़? कुछ तथाकथित सेक्युलर कहलाने वाले लोग कहते हैं कि भारत माता की जय और वन्देमातरम हम नहीं कह सकते क्योंकि इससे धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ती है। कुछ लोगों की थेथरई ऐसी होती है कि इस जयकार से ही क्या देशभक्ति दर्शायी जा सकती है। हमारे तो दिल में राष्ट्रवाद और देशभक्ति है। चलो माना कि वन्देमातरम या भारत माता की जय बोलने से देशभक्ति का कोई सरोकार नहीं है। टीका चन्दन लगाने से धर्म का कोई संबंध नहीं है तो हे धरती के महान बुद्धिजीवियों ,सियासतदानों ! क्यों इफ्तार पार्टी में टोपी पहन कर जाते हो? क्या बिना टोपी पहने तुम्हारा मुस्लिम प्रेम नहीं दिखेगा? क्योंकि वहां वोटबैंक की बात होती है। इसी तरह मन्दिर,चर्च और गुरुद्वारा में भी उसकी परंपरा का अनुसरण करना पड़ता है। जब बिना टोपी पहने तुम इफ़्तार नही खा सकते तो फिर भारत माता की जय और वन्देमातरम कहने में शर्म कैसी? अल्लाह,ईश्वर,गॉड जिस नाम से पुकार लें वह तो सभी जगह मौजूद है तो फिर हमें मन्दिर-मस्ज़िद, चर्च और गुरुद्वारा जाने की क्या जरूरत है? उस धर्म के प्रति हम आस्था जताने के लिए ही इन स्थलों पर हम जाकर मत्था टेकते हैं यह एक प्रतीक होता है हमारी आस्था के लिए। मस्जिद में मस्जिद के तौर तरीकों से, मन्दिर में हिन्दू धर्म के अनुसार,चर्च में ईसाई समुदाय की तरह और गुरुद्वारा में भी सर पर रुमाल रख कर ही जातें हैं। ठीक उसी तरह देशभक्ति के जज्बे को दर्शाने के लिए "वन्देमातरम" और "भारत माता की जय"  हम बोलते हैं। श्रद्धा तो हम अपने माँ-बाप पर रखते ही हैं लेकिन उनकी चरण वंदना क्यों करते हैं न भी करें तो आस्था और प्रेम खत्म नहीं होगा लेकिन अपनी श्रद्धा को दर्शाने के लिए उनका चरणस्पर्श करते हैं। यह बोलने से किसी धर्म या सम्प्रदाय को नुकसान नहीं होता।  यह किसी धर्म की जागीर नहीं यह तो अपने मुल्क,अपनी माटी का अभिनन्दन है। वन्देमातरम का ही नारा बुलंद कर आज़ादी के दीवानों ने इस देश को फिरंगियों से मुक्त कराया। भारत माता की जय बोलते हुए हजारों-लाखों जवान हँसते हुए वतन की खातिर मर मिटे। राष्ट्रगान जन गण मन तो अंग्रेजों के स्वागत में लिखी गयी लविता थी जिसे भारत ने सहज स्वीकार किया तो फिर वन्देमातरम तो राष्ट्रगीत है जिसमें सभी वर्ग और समाज के विकास का वंदन किया गया है। अरे, गिरगिट से भी तेज रंग बदलने वाले नेताओं!  मुस्लिम समुदाय को तो महज वोट बैंक बना रखा है तुमलोगों ने। अब सियासी गणित भी बदलने लगा है मुस्लिम की जगह दलित शब्द आ गए हैं। हरेक मौत में दलित ढूंढा जाता है। जब चुनाव का वक्त आता है तो मन्दिर-मस्जिद भटकते हो? तो फिर भैया ! वन्देमातरम और भारत माता की जय बोलने से किस बात की चिढ़ है? गिरिराज सिंह ने क्या गलत कहा कि अगर आप भारत और यहां की धरती को माता नहीं मानते तो फिर कोई हक नहीं बनता उसकी गोद में सोने का। बच्चे तो मां की ही गोद में सोते हैं न। जब मां की मर्यादा और उसके प्रति आस्था ही नहीं है तो फिर उसके साथ रहने का कोई अधिकार भी नहीं है। अगर वन्देमातरम और भारत माता की जयकार से देशप्रेम का कोई सबन्ध नहींहै तो फिर किसी भी धर्म के आयोजनों में दिखावा करने के लिए उसकी वेशभूषा का ढोंग न कीजिये। जाईये अपने रंग रूप में और कहिये की उस समुदाय के प्रति प्रेम दिखाने के लिए उसके पहनावे को धारण करने की जरूरत नहीं है। ऐसा नहीं करेंगे आप क्योंकि तब वहां आपका अपना स्वार्थ दिखेगा ,वोट बैंक की बात हो जाएगी। देश के टुकड़े करने और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले आपका हीरो होगा लेकिन मेरा तो हीरो सरहद पे जान देनेवाला सच्चा सिपाही है ।उसके लिए वन्देमातरम और भारत माता की जय।
जय हिंद
©पंकज प्रियम

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