तेज बहादुर के नामांकन रदद् होने पर हायतौबा क्यूँ?
तेज बहादुर नियमों से ऊपर है क्या। नामांकन में गलती के कारण हजारों पर्चे रदद् हुए हैं और यह पहला मामला नहीं है। हर बार चुनाव में पर्चे रदद् होते हैं क्योंकि चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार ही पर्चे दाखिल करने होते हैं इसलिए लोग कई सेटों में नामांकन करते हैं। तेज बहादुर का भी पर्चा गलत जानकारी देने की वजह से रदद् हुआ है। उसने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जो जानकारी भरी थी,सपा उम्मीदवार के रूप में भरे पर्चे में अलग ही जानकारी दी गयी। इसके बाद ही चुनाव आयोग ने स्पस्ट जानकारी देने को कहा। जानकारी नहीं दे पाने की वजह से नामांकन रदद् हुआ है इसमें हायतौबा मचाने की क्या जरूरत है? आज वह लोगों की नजर में सिर्फ इसलिए हीरो बना हुआ है क्योंकि वो मोदी के खिलाफ चुनाव में खड़ा था किसी और जगह से होता तो कोई घास भी डालता क्या ? दरअसल यह सिर्फ इसकी पब्लिसिटी स्टंट है। अगर वाकई चुनाव जीतकर सिस्टम को बदलने की चाहत रहती तो अपने क्षेत्र से खड़ा होकर चुनाव लड़ सकता था जहां इसको लोग जानते पहचानते थे लेकिन नहीं इसके मन सिर्फ लाइमलाइट में आने की चाहत थी इसलिए प्रधानमंत्री के खिलाफ खड़ा हो गया। इसके फेसबुक फ्रेंडलिस्ट में करीब 500 पाकिस्तानी है तो बहुत हदतक कोई बड़ी साजिश का भी यह मोहरा हो। ऐन मौके पर समाजवादी पार्टी का अपने घोषित प्रत्याशी शालिनी यादव को बिठाकर इसको उम्मीदवार बनाने का मकसद क्या है? लोगों की भावनाओं के साथ खेलने की गन्दी साजिश। महागठबंधन ने इसको पहले टिकट क्यों नहीं दिया? केजरीवाल की तरह पूर्वाग्रही होकर ही इसने भी मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने हरियाणा से बनारस पहुंच गया। जिस सेना ने उसको बर्खास्त कर दिया उसी के नाम पर लोगों से हमदर्दी जुटाने की नाकाम कोशिश शुरू कर दी। जो अपने नियोक्ता के प्रति,देश की सुरक्षा के प्रति वफादार नहीं रहा ,सेना में जिसका मन नहीं लगा वो भला क्या देश की सेवा करेगा?
रही बात उससे हमदर्दी दिखानेवालों की तो आज जो इसके साथ हमदर्दी दिखा रहे हैं वो तब कहाँ थे? जब उसे सेवा से बर्खास्त किया गया था। तब उसकी नौकरी बचाने के लिए क्यों नहीं आगे आये थे? सेना से उसकी बर्खास्तगी उसकी कार्यप्रणाली और कर्तव्यहीनता के कारण हुई है। किसी भी सैनिक पर कार्रवाई बिना सबूत और ठोस कारण के नहीं हो सकता और अगर वो सही था तो फिर बर्खास्तगी के खिलाफ तब कोर्ट क्यों नहीं गया? सरहद पर हमारे वीर जवान देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर देता है और इसे सिर्फ दाल की ही चिंता थी? अगर वाकई में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की कूबत थी तो उस सिस्टम के खिलाफ न्यायालय जाता और कार्रवाई नहीं होती तब कहता। जानकारी के मुताबिक उसके बेटे ने उसके नशाखोरी और उटपटांग क्रियाकलापों से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
सेना के नाम देश की भावनाओं से मत खेलो बहादुर! सेवा में रहते तो देश की सेवा न कर सका कम से कम अब समाज के लिए ही ईमानदारी दिखाओ। सियासी गलियारे का मोहरा मत बनो।
पंकज भूषण पाठक
No comments:
Post a Comment