एक पत्रकार,कलाकार और साहित्यकार को बिल्कुल निष्पक्ष रूप से सभी चीजों को देखना चाहिए। न किसी दल के पक्ष में और न विपक्ष में। सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मत होनी चाहिए। अपने देश,धर्म और समाज को गाली देने वाले ही बुद्धिजीवी कहलाते हैं और संस्कृतियों का निर्वाह करने वाले ज़ाहिल।टुकड़े गैंग के साथ लोग खड़े हो जाते हैं अवार्ड वापसी की बात करते हैं लेकिन उन्हें यह नहीं दिखता की इतनी आज़ादी दूसरे मुल्कों में लोगों नसीब नहीं है।
आलोचना सरकार की अवश्य होनी चाहिए लेकिन उसके अच्छे कार्यों की भी सराहना होनी चाहिए। जैसे अंध भक्ति घातक होती है ठीक उसी तरह अंध विरोध महा घातक होता है।
©पंकज प्रियम
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Sunday, May 5, 2019
572. साहित्यकार का धर्म
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