Monday, May 13, 2019

581. पहला आतंकी!

आतंक का धर्म

आतंक का जब धर्म नहीं, फिर तुमने कैसे जाना,
हिन्दू ही था पहला आतंकी, यह तुमने कैसे माना?

गोडसे ने मारा गाँधी, जिसका उसको दण्ड मिला,
जिसने काटा भारत, उसको राज अखण्ड मिला?

हत्यारा और आतंकी में, जो फर्क समझ तुम पाते
नहीं करते विष वमन यूँ, ना ऐसे उलझ तुम जाते।

भूल गये क्यूँ जिन्ना को, जिसने भारत काटा था,
कुर्सी की ख़ातिर जिसने अपनों को ही बांटा था।

देश विभाजन में आख़िर कितना था संहार हुआ
भाई-भाई कट मरे सब, कैसा वो नरसंहार हुआ।

निर्दोषों की जानें जाती, जब जिहाद वो करता है
बहत्तर हूरों की ख़ातिर, क्यूँ नौजवान वो मरता है।

निकल पड़ते हजारों जब, ले जनाज़ा आतंकी का
नहीं दिखता क्या धर्म तुम्हें, तब उस आतंकी का?

नहीं आतंकी का धर्म यहाँ, नहीं उसका मज़हब है,
मानवता का दुश्मन, आतंक ही उसका मज़हब है।

नहीं लड़ाती गीता कभी, ना कुरान ही बैर करवाते
स्वार्थ सियासत की ख़ातिर नेता ही सबको मरवाते।

सहज-सरल-सहिष्णु हिन्दू, नहीं आतंकी बोता है,
प्रेम करुणा का वाहक हिन्दू,नहीं आतंकी होता है।
©पंकज प्रियम

2 comments:

वाणी गीत said...

आतंक की भी परिभाषा तेरा आतंक मेरा आतंक में बदल गई है.
अच्छा लिखा!

विकास नैनवाल 'अंजान' said...

आंतक की एक ही परिभाषा है जो सब पर लगती है। अपने राजनितिक या धार्मिक विचारधारा के लिए हिंसा का साहारा लेना जिसमें आम जनता मरती हो। इधर गोडसे का कृत्य से आतंक तो उपजा था। वह राजनीति से प्रेरित भी लेकिन हिंसा को एक समूह के उपर न करके व्यक्ति विशेष तक सीमित किया था। इस कारण वो आतंकवादी तो नहीं कहलाया जायेगा।
पार क्योंकि उसके समर्थक उसके काम की सराहना करते हैं तो दूसरी पार्टी उसे जोश में आकर उतने ही कड़े शब्दों में नकारना चाहती है।
इस्लामिक आतंकवाद शब्द तो इस्तेमाल होता आया है।
सुंदर अभिव्यक्ति।