आस्तीन में छुपे साँपो,
क्या कहूँ तुझे? मन तो करता है कुचल डालूँ फन तुम्हारा अपने हाथों से। लेकिन हमारे देश का पवित्र संविधान कानून को अपने हाथ में लेने की इजाज़त नहीं देता। मैं अपने शब्द रूपी तीरों से ही तेरी छाती को छलनी करूँगा। अरे! जरा भी शर्म नहीं आती तुमलोगों को अपने मुल्क से गद्दारी करते हुए। जमीर तो बचा ही नहीं तुम्हारे रूह में कम से कम नमक हरामी तो मत करो। इतिहास गवाह है विभीषण भले ही रामभक्त कहलाया लेकिन देशद्रोही होने के कारण कभी पूजा नहीं गया। जयचंद आज गद्दारों का उदाहरण बन चुका है। दो अपनी माटी, अपने मुल्क का न हुआ वो किसी और का क्या हो सकता है? याद रखो अपने मुल्क के गद्दारों पर दुश्मन भी आँख मूंदकर भरोसा नहीं करता। वो सिर्फ तुम्हे मोहरा बनाएगा और जब काम निकल जाएगा तो एक दिन तुम्हें भी खत्म कर देगा। दुनिया भर के मुल्कों में झाँककर देख लो इतनी आज़ादी और सहिष्णुता कहीं और दिखता है क्या? फिर भी तुम्हें आज़ादी चाहिए। जिसने तुमको पाला पोसा,हर सुख सुविधा दी उसी भारत माता की गोद में बैठकर उसे तोड़ने,खत्म करने की बात करते हुए। घिन आती है तुम्हारी सोच पर जो दुश्मनों के सुर में सुर मिलाते हो। उसकी जयजयकार करते हुए। पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हो। जरा उस देश मे जाकर भारत माता की जय बोलकर दिखाओ तो समझूँ।
और अधिक क्या लिखूं तुमलोगों के कारण ही देश कमजोर पड़ता है और दुश्मनों को हमले का मौका मिलता है। अब भी वक्त है सुधर जाओ वरना न घर के रहोगे और न घाट के।
©पंकज प्रियम
गिरिडीह, झारखंड
No comments:
Post a Comment