समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
चुनावी चकल्लस-8
किसान /मुक्तक उगाये खेत से सोना,.....वही किसान होता है, जमीं का चीर के सीना, जमीं पे जान बोता है। किसानों की भलाई का, करे दावा सभी नेता- लगा फाँसी अन्नदाता, भला क्यूँ प्राण खोता है।। ©पंकज प्रियम
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